संसद भवन में जज पर महाभियोग प्रस्ताव की कार्यवाही

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा पर महाभियोग की प्रक्रिया शुरू – राज्यसभा और लोकसभा में 195 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव राज्यसभा और लोकसभा में पेश। 195 सांसदों ने किया हस्ताक्षर, मामला सुप्रीम कोर्ट में।

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा पर महाभियोग की प्रक्रिया अब आधिकारिक रूप से शुरू हो चुकी है। राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने सोमवार को सदन में जानकारी दी कि उन्हें 50 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित महाभियोग प्रस्ताव प्राप्त हुआ है, जिससे न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ कार्रवाई का रास्ता खुल गया है।

मार्च 2025 में लुटियंस दिल्ली स्थित न्यायमूर्ति वर्मा के निवास स्थान पर आग लगने की घटना के दौरान सेमी-बर्न्ट नकदी बरामद हुई थी। इस मामले की जांच के लिए CJI संजीव खन्ना ने तीन न्यायाधीशों की इन-हाउस समिति गठित की थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ गंभीर टिप्पणियाँ की थीं।

  • राज्यसभा में: 50 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, जिसमें भाजपा, कांग्रेस, TDP, जेडीयू, CPI(M), शिवसेना और अन्य दलों के सदस्य शामिल हैं।
  • लोकसभा में: 145 से अधिक सांसदों ने अलग से स्पीकर ओम बिरला को प्रस्ताव सौंपा।
  • प्रमुख हस्ताक्षरकर्ता: राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल, रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूडी, सुप्रिया सुले और पीपी चौधरी।
  • जजेज़ (इन्क्वायरी) एक्ट, 1968 के तहत यदि दोनों सदनों में प्रस्ताव पेश होता है, तो धारा 3(2) लागू होती है, जिसके तहत संसद की ओर से एक विधिवत जांच समिति गठित की जाती है।
  • सचिवालय इस दिशा में अब औपचारिक कार्रवाई शुरू करेगा।
  • न्यायमूर्ति वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इन-हाउस समिति की रिपोर्ट और महाभियोग की अनुशंसा को “असंवैधानिक” और “अधिकार क्षेत्र से परे” करार दिया है।
  • उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें न तो सबूतों की जानकारी दी गई, न ही CCTV फुटेज दिखाया गया, और प्रमुख गवाहों से उनकी गैर-मौजूदगी में पूछताछ की गई — जो प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है।
  • उन्होंने समिति की 3 मई 2025 की रिपोर्ट को निरस्त करने की मांग की है।

न्यायमूर्ति वर्मा की याचिका में कहा गया कि:

  • 1999 की फुल कोर्ट रेज़ॉल्यूशन के तहत शुरू की गई इन-हाउस प्रक्रिया अब “सीमाएं लांघती” जा रही है।
  • यह प्रक्रिया संसदीय शक्तियों का अतिक्रमण है और संविधान के मूल ढांचे में निहित शक्तियों के विपरीत है।
  • न्यायपालिका स्वयं को विधायिका की भूमिका में रखकर न्यायाधीशों को हटाने की सिफारिश नहीं कर सकती।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *