1 अगस्त से UPI में कई बदलाव, जानें क्या आपके लिए कुछ बदलेगा?
1 अगस्त 2025 से पूरे देश में यूपीआई (UPI) से जुड़े नए नियम लागू होने जा रहे हैं। NPCI (नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) और भारत सरकार ने इन बदलावों को सुरक्षा, पारदर्शिता और सिस्टम की स्थिरता के लिए ज़रूरी बताया है।
इन नियमों को लेकर आम जनता में सबसे बड़ा सवाल यही है — क्या अब UPI पर चार्ज लगेगा? और क्या ट्रांजेक्शन लिमिट कम हो गई है? चलिए आसान भाषा में जानते हैं कि आम उपयोगकर्ता और व्यापारी दोनों के लिए क्या बदला है और क्या नहीं।
UPI लिमिट में कोई बदलाव नहीं
सरकार ने साफ किया है कि आम उपयोगकर्ताओं के लिए ₹1 लाख प्रति दिन की सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
कुछ विशेष ट्रांजेक्शन (जैसे मेडिकल खर्च, शिक्षा शुल्क और टैक्स पेमेंट) के लिए यह सीमा ₹5 लाख तक है — और यह भी पूर्ववत बनी रहेगी।
क्या अब यूपीआई पर चार्ज लगेगा?
फिलहाल कोई भी चार्ज आम उपभोक्ताओं पर लागू नहीं किया गया है।
हालांकि NPCI विचार कर रहा है कि ₹3,000 से ऊपर के P2M (Person to Merchant) ट्रांजेक्शन पर 0.2%–0.3% MDR (Merchant Discount Rate) लागू किया जाए।
यह प्रस्ताव फिलहाल सिर्फ व्यापारियों के लिए है, ग्राहक से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।
यह कदम Google Pay, PhonePe, Paytm जैसे ऐप्स से लेन-देन को अधिक प्रोफेशनल बनाने की दिशा में देखा जा रहा है।
AutoPay और API लिमिट्स के नए नियम
अब से UPI आधारित ऐप्स और प्लेटफॉर्म कुछ API सुविधाओं का इस्तेमाल एक ग्राहक के लिए सीमित बार ही कर पाएंगे।
जैसे:
- List Account API अब एक दिन में केवल 25 बार उपयोग किया जा सकेगा।
- AutoPay के लिए अब केवल सीमित बार ही अपने-आप पैसे कट सकेंगे — इससे Netflix, OTT, मोबाइल रीचार्ज जैसी सेवाओं पर बेहतर नियंत्रण मिलेगा।
रिफंड और फेल ट्रांजेक्शन में होगी तेजी
UPI ट्रांजेक्शन फेल होने पर अब रिफंड पहले से तेज़ मिलेगा।
NPCI ने सिस्टम के Response Time को 50% तक बेहतर किया है, जिससे पैसे वापस पाने की प्रक्रिया और तेज़ हो जाएगी।
विशेष रूप से शाम 5 से 9:30 बजे और रात 10 से दोपहर 1 बजे तक ट्रैफिक अधिक रहता है, इन समयों में Retry Limit लागू होगी ताकि सर्वर पर अतिरिक्त बोझ न पड़े।
व्यापारियों पर बढ़ी निगरानी
व्यापारी अकाउंट्स के लिए अब:
- चार्जबैक नियम,
- KYC वेरिफिकेशन सिस्टम,
- और Transaction Monitoring को और सख्त किया जाएगा।
यह नियम विशेष रूप से ई-कॉमर्स कंपनियों, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और उच्च-मूल्य के व्यापारी लेनदेन पर लागू होंगे — जिससे पारदर्शिता बनी रहे।






