18 मई 1951 को झुंझुनूं जिले के किठाना गांव में जन्मे जगदीप धनखड़ का सफर एक साधारण किसान परिवार से शुरू हुआ। आज भी लोग उन्हें ‘किसान पुत्र’ के नाम से जानते हैं। यही पहचान बाद में भाजपा द्वारा उन्हें उपराष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित करते समय भी उजागर की गई थी।
शिक्षा से नेतृत्व तक – एक मजबूत नींव
- चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल से शिक्षा प्राप्त की
- राजस्थान यूनिवर्सिटी से साइंस ग्रेजुएशन और फिर LLB
- 1979 में वकालत शुरू की और धीरे-धीरे बने वरिष्ठ अधिवक्ता
- राजस्थान हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत
- 1989 में झुंझुनूं से सांसद बने, फिर संसदीय कार्य राज्य मंत्री
राजनीतिक सफर – संघर्ष, दल परिवर्तन और स्थायित्व
- 1990 में चंद्रशेखर सरकार में मंत्री बने
- राजस्थान विधानसभा में विधायक (1993–1998, किशनगढ़)
- जनता दल, कांग्रेस और अंत में भाजपा से जुड़ाव
- 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बने — जहां टीएमसी सरकार से खुला टकराव रहा
उपराष्ट्रपति चुने गए – सबसे बड़े वोट अंतर से जीत
- 2022 में भाजपा और NDA की ओर से उम्मीदवार घोषित
- 6 अगस्त 2022 को मार्गरेट अल्वा को हराकर बने भारत के 14वें उपराष्ट्रपति
- उन्हें 528 वोट मिले — 1992 के बाद से सबसे बड़ी जीत
- राज्यसभा के सभापति के रूप में भी सशक्त भूमिका निभाई
स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(A) का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। उनके कार्यकाल को भले ही छोटा कहा जा रहा हो, लेकिन उनकी स्पष्टता, कानूनी ज्ञान और संसदीय शुचिता के लिए उन्हें लंबे समय तक याद रखा जाएगा।
| तथ्य | महत्व |
|---|---|
| किठाना जैसे छोटे गांव से उपराष्ट्रपति तक का सफर | गांव के युवाओं के लिए प्रेरणा |
| वकील, सांसद, राज्यपाल, फिर उपराष्ट्रपति | बहुआयामी प्रतिभा और समर्पण |
| किसान परिवार की पृष्ठभूमि | ग्रामीण भारत की आवाज़ को ऊंचाई मिली |
| सर्वोच्च पद से गरिमा से इस्तीफा | लोकतांत्रिक आदर्शों का सम्मान |






